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Motivational story of Arunima Sinha

हम कई बार छोटी-छोटी बातों से परेशान हो जाते हैं| फलां व्यक्ति ने हमारे बारे में इतना गलत कैसे बोला? उसकी हिम्मत कैसे हो गई हमारे बारे में इस तरह से बोलने की? फिर या तो तो हम उस शख्स से लड़ बैठते हैं ,ना लड़ पाने की स्तिथि  में कुंठित हो जाते हैं|
      सच तो यह है दोस्तों धरती पर जन्मा कोई व्यक्ति ऐसा है ही नहीं जिसने असफलता का मुंह ना देखा हो ,अपयश का स्वाद ना चखा हो| जिसका पथ हमेशा सरल रहा हो| फिर भी कुछ लोग इन्हीं कांटो की राह से गुजरते हुए बहुत सफल हो जाते हैं तो कुछ  परिस्थितियों में उलझ कर रह जाते हैं|
       पर दोस्तों, क्या आपने सोचा है ? अपने क्रोध अपनी कुंठा की ऊर्जा का प्रयोग हम सृजन में कर सकते हैं| यही ऊर्जा सफलता के मार्ग में ईंधन का काम कर सकती है |
       चलिए, इस यात्रा की कड़ियों को समझते हुए मिलते हैं एक ऐसी लड़की से जिसकी स्पाइन में 3 फ्रैक्चर, एक पैर कट गया ,दूसरे की हड्डियां टूट- टूट कर निकल गई |आगे का पता नहीं उठ भी पाएगी कि नहीं यदि उठी, तो किसके सहारे चलेगी व्हीलचेयर या बैसाखी? समाज में उसके बारे में अनर्गल बातें- जिन की सच्चाई लड़की का परिवार चिल्ला चिल्ला कर बता रहा था| पर कोई सुनने के लिए तैयार नहीं |लेकिन  फिर यही बेटी दुनिया की सबसे पहली दिव्यांग माउंटेनियर बनी|


         न केवल पर्वतारोही बल्कि लेखिका .. बेस्ट सेलर बुक "एवरेस्ट की बेटी" जिसमें अरुणिमा ने सहेजा है हर अनुभव पहाड़ की यात्रा का, अनुभव खुद को साबित करने की जज्बे का, अनुभव  आत्म संघर्ष का |
        बात सन 2011 की जब 23 वर्षीय अरुणिमा वॉलीबॉल की नेशनल प्लेयर थी | एक रोज लखनऊ से दिल्ली जाने के लिए जनरल कंपार्टमेंट में यात्रा कर रही थी| उसी बीच कुछ बदमाशों ने गले में पहने हुए गोल्ड चेन छीनने की कोशिश की| अरुणिमा ने विरोध किया तो बोखलाए बदमाशों ने अरुणिमा को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया | उसी समय दूसरे  ट्रैक से ट्रेन आ रही थी जिससे अरुणिमा टकराई और दोनों ट्रैक के बीच में गिर गई|
         अरुणिमा का एक पैर कट गया | एक पैर कट चुका था दूसरे की हड्डियां टूट कर बाहर आ गई थी| अरुणिमा चिल्ला रही थी पर आवाज सुनने वाला कोई नहीं था | आंखों से दिखना भी बंद हो गया था| शरीर में movement नही हो रहा था| ट्रेन के track पर चूहे आकर अरुणिमा का पैर कुतरने लगते , ट्रेन आती, वाइब्रेशन होता फिर भाग जाते लेकिन ट्रेन के जाते ही चूहे फिर आ जाते और अरुणिमा का कटा पैर कुतरने लगते |यही सिलसिला 7 घंटे चला जिसमें लगभग 49 ट्रेन आई और गई |
अब सुबह हो गई थी | किसी ग्रामीण ने  अरुणिमा को देख कर जिला अस्पताल- बरेली में भर्ती कराया| जहां डॉक्टर बात कर रहे थे" कैसे बचाया जाए इस लड़की को हमारे पास तो Anasthesia  नहीं है" तब अरुणिमा ने हिम्मत जुटाकर कहा जुटाकर कहा" सर ,पूरी रात रेलवे ट्रैक पर मैं कटे पैर का दर्द बर्दाश्त करती रही अभी तो आप मेरे अच्छे के लिए पैर काटेंगे "डॉक्टर को लड़की की हिम्मत के आगे झुकना पड़ा |डॉक्टर और फार्मासिस्ट ने अपना एक-एक  यूनिट ब्लड देकर बिनाबिना anesthesia अरुणिमा का पैर अलग कर दिया|

                                       
                      अरुणिमा सिन्हा

      दोस्तों, सोच कर देखिए - मेरे तो रोम खड़े हो जाते हैं ,मन भर जाता है ,पीड़ा की कल्पना करके | आखिर कैसे इतनी हिम्मत... इतना दर्द सहा होगा ?
     अगले दिन लोगों को पता चला कि अरुणिमा नेशनल प्लेयर है तो उसे लखनऊ के केजीएमसी हॉस्पिटल में एडमिट किया गया | फिर दिल्ली के एम्स ट्रामा सेंटर में भेज दिया गया | जहां अरुणिमा 4 महीने एडमिट रही| घटना के 25 दिन बाद जब अरुणिमा की हालत कुछ ठीक  हुई तो उन्होंने अखबार देखा|
       संकट की बारिश तो पहले से ही हो रही थी अखबार देखते ही पैरों तले जमीन खिसक गई |अखबार में बड़ा-बड़ा लिखा था 'अरुणिमा के पास ट्रेन का टिकट नहीं था इसलिए अरुणिमा ट्रेन से कूद गई' परिवार ने इस खबर का खंडन किया तो आगे छपा 'अरुणिमा ट्रेन से कूदकर सुसाइड करने गई थी|'
          सोच कर देखिए जिस परिवार की जवान बेटी की ऐसी दशा हो उसके बारे में अनर्गल बातें सुनकर क्या बीती होगी? सोच कर देखिए ,दोस्तों जिस लड़की को पता ही ना हो कि वह बिस्तर से उठ पाएगी या नहीं उठ पाएगी तो व्हीलचेयर बैसाखी कैसे कटेगी उसकी जिन्दगी? क्या बीती होगी उसके दिलो-दिमाग पर....
           पर यही पल अरुणिमा ने अपनी जिंदगी में turning point बना लिया | यही पल अरुणिमा को एवरेस्ट की बेटी बनाने की शुरुआत थी| यही एक पल उसकी दिलेरी  का सबूत है| अरुणिमा असहाय थी, घायल थी ,परेशान थी, पर हारी नहीं थी| उसी पल उसने सोचा*" ठीक है आज आप लोगों का दिन है ,जो चाहो बोलो लेकिन एक दिन मेरा होगा और मैं साबित कर दूंगी मैं क्या थी और क्या हूं?"
       अरुणिमा ने संकल्प लिया पर्वतारोही बनने का| जो सबसे कठिन खेलों में से एक है ना सिर्फ पर्वतारोही बनने का बल्कि दुनिया की सर्वोच्च चोटी mount Everest फतह करने का संकल्प| पर दोस्तों अभी केवल संकल्प लिया था आगे बहुत कुछ बाकी था|किसी कवि ने ऐसे ही दिलेर व्यक्तित्व के लिये लिखा है-
        
     "अभी तो इस बाज की अंतिम उड़ान बाकी है|
              अभी तो परिंदे का इंतिहान बाकी है |
                  अभी-अभी लांघा है समुंदर को |
                अभी तो सारा आसमान बाकी है |"

        इस दिलेर बेटी अरुणिमा सिन्हा
से फिर मिलेंगे अगली कड़ी में | जानेंगे  कैसे घायल अरुणिमा फतेह करती है माउंट एवरेस्ट को ?

विल्मा रुडोल्फ: दृढ़ इच्छाशक्ति का जादू

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                     धन्यवाद|

Comments

Unknown said…
I like it and i motivated of this story
Unknown said…
Very very motivational
Anonymous said…
Super motivational and inspiring story .... Great writing style ... Well done
Binod Shukla said…
जिन्दगी हर कदम एक नई जंग है ।संघर्ष धैर्य आत्मविश्वास और संकल्प के साथ जो बढता है वो शिखर पर पहुंचता है । बहुत प्रेरणादायी लेख शुभकामनाये आशीर्वाद
Anonymous said…
Really inspiring

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