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बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न



दिये से डर शलभ ने,
नेह का बंधन नही तोडा।
जहाँ चाहा किनारों ने ,वही से धार को मोड़ा,
अनेक शूल तो पहरा लगाये रहे हर दम,
पर किसी भी फूल ने गंध बिखराना नही छोड़ा।

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