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इस दिवाली अपने राम को समझें

रामलला को समझने का सफर

इसमें अचंभित होने वाली क्या बात है। मैं हम सबके उन्हीं राम की बात कर रही हूं। जिनका वर्णन पूजनीय तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में किया है। जी हां...वही राम जिनके घर वापसी की खुशी आज भी हम दिवाली के रूप में मनाते हैं ।..बिलकुल सही.... हम सबके वही राम... जिन्हें दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण में देखने के लिए हम पड़ोसियों के घर जाते थे। 
                       
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एक किरदार जो भगवान बन गया

चलिए दोस्तों, दूरदर्शन की रामायण के राम से जुडी एक घटना आपके साथ शेयर करते हैं।
       जब दूरदर्शन पर रामायण आती थी।  उस समय का सबसे लोकप्रिय किरदार यानी...राम का किरदार अरुण गोविल जी ने निभाया था। और लोग उस किरदार से इतनी गहराई से जुड़ गए थे कि अरुण गोविल को ही राम समझने लगे थे ।
     एक बार अरुण गोविल अपनी पत्नी के साथ कहीं जा रहे थे और रास्ते में उनकी गाड़ी खराब हो गई। राम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल जब नीचे उतरे तो गांव के किसी व्यक्ति ने उनको पहचान लिया और बड़े सत्कार के साथ अपने घर ले गया और कुछ ही क्षणों में उस व्यक्ति के घर राम के दर्शन के लिए लोगों का ताता लग गया । अरुण गोविल जी ने बताया "उस समय सबसे बड़ी मुश्किल गाड़ी का खराब होना नहीं था बल्कि लोगों को समझा पाना था कि मैं राम नहीं अरुण हूं।"
                     
Arun Govil as Ram

      ऐसी अद्भुत विलक्षण छवि वाले राम को हमने पढ़ा है सुना है रामलीला और टीवी में देखा है। लेकिन विचार कीजिए क्या हमने राम को समझा है?

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     मित्रों वास्तविकता में तो इतने आदर्श ,विशाल व्यक्तित्व को पूरी तरह समझ पाना बहुत मुश्किल है पर आज हम कुछ ऐसे पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे जिनकी वजह से राम का पूरा जीवन संघर्षमय होते हुए भी अनुकरणीय है..जिसकी वजह से राजकुमार राम....पुरुषोत्तम राम बने और पुरुषोत्तम राम..... प्रभु राम बन गए।

राम का जीवन और आपदाएं

मित्रों आपको नहीं लगता कि राम का जीवन पूरी तरह से आपदामय था? आप इस बात से सहमत हो सकते हैं या फिर असहमत भी । पर मैं या कुछ घटनाओं का जिक्र करना चाहूंगी।

1- राजगद्दी और बनवास

दोस्तों हम सभी जानते हैं कि गृहस्थाश्रम में प्रवेश के बाद नियमानुसार राम का राजतिलक होना चाहिए था। लेकिन पिता द्वारा कैकई माता को दिए गए वचन का पालन करने के लिए राम को ना सिर्फ राज सिंहासन का त्याग करना पड़ा बल्कि महल से निकलकर वन में जाना पड़ा।
         मित्रों सोच कर देखिए - राम राजकुमार थे सब के दुलारे थे और नियमत: राजा बनने का अधिकार था उनको। राम चाहते तो समझा लेते, मना लेते माता को । और भाई भरत भी तो राम को ही राजा बनवाना चाहते थे। और अगर कोई नहीं मानता तो शक्ति और साहस की कोई कमी तो थी नहीं राम में । कुछ दिन पहले ही तो शिवजी का धनुष तोड़ अपनी सामर्थ्य का परिचय दिया था।
        लेकिन प्रिय मित्रो,  राम ने कुल की मर्यादा को चुना ,परिवार में शक्ति के प्रयोग की जगह विनम्रता को चुना, कलह के दुस्साहस की जगह त्याग के साहस पूर्ण मार्ग को चुना। और मेरे विचार से यही बात राजकुमार राम को पुरुषोत्तम राम बनाती है पुरुषोत्तम....जो शक्तिवान होते हुए भी मर्यादा,विनम्रता, संघर्षमय लेकिन शांत पूर्ण मार्ग पर चले।


2- नारी का सम्मान 


वन को जाते समय राम सीता को अधिकार पूर्वक बाध्य कर सकते थे। कि  वन  केवल मैं जाऊंगा तुम नहीं जब मेरे खुद का ठिकाना नहीं फिर तुम्हें लेकर कहां भटकुंगा?
लेकिन राम ने सीता को बाध्य नहीं किया बल्कि सीता के निर्णय का सम्मान किया और सिया के राम बनकर जगत को  नारी के आत्मसम्मान की रक्षा का संदेश दिया।

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3- सहयोग की शक्ति

पहले तो राम लखन और सीता जी ही थे पर सीता हरण के बाद जब राम लखन सीता जी को खोज रहे थे। तब धीरे-धीरे उन्होंने लोगों से जुड़ना शुरू किया आवश्यकता होने पर मदद की और मदद ली भी। छोटे बड़े का भेद तो था ही नहीं उनमें।

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भालू योनि जामवंत हो या वानर योनि के हनुमंत.... राम ने सबको अपनाया और इसी अपनत्व और सहयोग से सिया की खोज और रावण पर विजय जैसे दुःसाध्य कार्य संपन्न किये।


4- जितना बड़ा पद उतना बड़ा उत्तरदायित्व


 रावण पर विजय के बाद जब राम अयोध्या आए और आगमन पर प्रजा ने घी के दिए जलाकर अयोध्या को दुल्हन की तरह सजा दीया ताकि उनके रामलला के जीवन में सदा प्रकाश बना रहे। प्रसन्नता बनी रहे।
    उन्हीं रामलला के जीवन में जब कुछ पल सुख के आए थे तो धोबी के कटु वचनों की वजह से राम ने अपनी सिया का त्याग कर दिया।
                           
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उस सिया का त्याग किया...जिसने महल के सुख की जगह राम का साथ चुना था। उस सिया का त्याग किया जिसे... जरा सी परेशानी होने पर तिनका का तीर बनाकर जयंत को काना कर दिया। उस सिया का त्याग कर दिया ...जिसके कहने पर मारीच के पीछे भागे थे। उस सिया का त्याग किया... जिसके लिए वह दशानन, लंकापति रावण से भिड़ गए। राम ने त्याग किया उस सिया का...जो उनके बच्चों की माँ बनने वाली थी। ना सिर्फ खुद त्याग किया बल्कि अयोध्या के बाहर जंगल में छुड़वा दिया। आखिर क्यों?
     जब राम ने सिया के लिए इतना कुछ किया ही था। तो धोबी की बात पर ध्यान देने की क्या आवश्यकता थी? और अगर ध्यान दिया भी था , तो राम राजा थे उनके सभी अधिकार सुरक्षित थे । धोबी को समझा कर अथवा दंड देकर सुधार देते।

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     लेकिन दोस्तों मुझे लगता है प्रभु राम के लिए भी कहां आसान रहा होगा  इतना कठोर निर्णय लेना? लेकिन एक राजा का कर्तव्य होता है कि वह व्यक्तिगत और पारिवारिक सुखों से पहले प्रजा की सुख- सुविधाओं का ध्यान रखे। शायद इसीलिए रघुपति ने विरह की पीड़ा को आत्मसात किया ।जिससे उनके व्यक्तिगत जीवन की छवि से उनकी प्रजा में नकारात्मकता न आये। और सिद्ध कर दिया बड़े पद , बड़े उत्तरदायित्व और बड़े त्याग की संभावना के साथ ही आते हैं।

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4- अपने पुत्रों से सामना

इन सभी समस्याओं से ज्यादा तो राम के हृदय में विचलन तब हुआ होगा जब उन्हें ज्ञात हुआ होगा कि अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा छुड़ाने के लिए वे जिन बालकों के वध तक को तैयार थे वे उनके अपने ही पुत्र हैं।
                         
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पुत्र.... जिन्होंने पिता को देखा तक नहीं था ...जिनका बचपन मां के साथ जंगल में बीत रहा था । उन बालकों का क्या दोष था जो अधिकार होने के बाद भी पिता और परिवार के सुख से वंचित रहे? और पिता को देखा भी तो स्वमं से युद्ध की स्थिति में। क्या बीती होगी उस पिता राम के हृदय पर , विचार कीजिए?
          दोस्तों मुझे लगता है  कि राम ने जीवन की विपरीत से विपरीत परिस्थिति में  अपना आंतरिक संतुलन गहरे सागर की तरह शांत बनाये रखा और उन्होंने बड़े से बड़े संकट का सामना पूरी दृढ़ता और धैर्य से किया इसीलिये राम ना सिर्फ आदर्श है बल्कि पूज्य हैं, प्रभु हैं।


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