आखिर क्यों नील गगन का बादशाह खुद को लहूलुहान कर देता है?
हम सभी जीवन में कभी ना कभी निराशा का अनुभव करते हैं ...थक जाते हैं... जीवन बोझ लगने लगता है ...विचारों और शरीर का समन्वय नहीं हो पाता... आप सोच रहे होंगे कैसी बात कर रही हूं मैं ? उम्र के एक मोड़ पर सबके साथ ही ऐसा होता है और फिर जिस बात का समाधान ही ना हो उस पर कैसा चिंतन ?
पर समाधान है दोस्तों, चाहिए आपको? तो चलिए मिलते हैं - उस अद्भुत बादशाह से। जिसे हमने या आपने नहीं चुना बल्कि प्रकृति ने बादशाह बनाया है । मिलते हैं पक्षीराज बाज से-
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'जब तूफान आता है और सब पक्षी अपना आशियां ढूंढ रहे होते हैं तब बाज अपने पंखों को फैला बादलों से ऊपर उड़ रहा होता है।'
आपको क्या लगता है प्रकृति का मन किया और बना दिया बादशाह....बाज को परीक्षा नहीं देनी पड़ती ? पर दोस्तों प्रकृति यूं ही किसी को कुछ नहीं दे देती बल्कि उसके लिए उपयुक्त पात्र बनना होता है। बाज को भी ट्रैनिंग लेनी होती है। चलिए , चलते हैं पक्षीराज की प्रशिक्षण यात्रा पर।
प्रशिक्षण यात्रा
जब सभी पक्षी अपने नन्हे चूजों को घोसले में रखते हैं चोंच में दाना डालते हैं तब पक्षीराज अपने बच्चे को कमांडो की तरह प्रशिक्षित करता है।
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बाज अपने नन्हे बच्चे को पंजे में दबाकर धरती से लगभग 12 किलोमीटर ऊपर उड़ता है। रफ्तार इतनी तेज के 12 किलोमीटर ऊपर लगभग 7 मिनट में पहुंच जाता है। फिर वँहा से अपने बच्चे को छोड़ देता है ।
धरती पर वापस गिरते समय 2 किलोमीटर तक तो चूजे को अंदाजा ही नहीं होता आखिर हुआ क्या? फिर 7 से 9 किलोमीटर की दूरी तक नन्हा चूजा अपने पंख खोलने का प्रयास करता है। पंख धीरे-धीरे खुलते हैं.... धीरे-धीरे पंख उड़ान की अवस्था में पहुंचने लगते हैं लेकिन अभी नन्ही जान उड़ना नहीं सीख पाती।
धरती पर वापस गिरते समय 2 किलोमीटर तक तो चूजे को अंदाजा ही नहीं होता आखिर हुआ क्या? फिर 7 से 9 किलोमीटर की दूरी तक नन्हा चूजा अपने पंख खोलने का प्रयास करता है। पंख धीरे-धीरे खुलते हैं.... धीरे-धीरे पंख उड़ान की अवस्था में पहुंचने लगते हैं लेकिन अभी नन्ही जान उड़ना नहीं सीख पाती।
धरती से मात्र 500 से 1000 मीटर की दूरी पर जब लगता है बस अब तो गए जान से। उसी समय पीछा कर रही मां बाज चूजे को अपने पंजों की गिरफ्त में ले लेती है और पंखों में छिपा लेती है।
मौत के डर के बीच मां के पंजों की पकड़ और पंख की गर्माहट एहसास दिलाती होगी मां होने का मतलब। खैर !यही सिलसिला चलता रहता है। ' High pressure and maximum risk' का । जब तक कि नन्हा चूजा उड़ना नहीं सीख लेता या फिर नीलगगन का बादशाह बनने के लायक नहीं हो जाता।
कुछ रोचक तथ्य
देखा आपने, बड़ी ना जिज्ञासा। तो देर किस बात की यह भी जानिए-
1- वैसे तो तेज चाल के लिए चीते को जाना जाता है पर नील गगन में बाज की बादशाहत होती है। बाज सबसे तेज उड़ने वाला पक्षी है। वह 320 किलोमीटर प्रति घंटा से भी तेज गति से उड़ सकता है।
2-बाज मांसाहारी पक्षी है जो 5 किलोमीटर की दूरी से भी अपने शिकार को देख सकता है। और अपने से 10 गुना ज्यादा वजन वाले शिकार को पकड़कर उड़ सकता है।
ना सिर्फ आसमान का बादशाह बल्कि इतिहास के पन्नों में भी बाज की मौजूदगी है।
3- बाज मध्यम आकार की चिड़ियों को अपना ग्रास बना लेता है । अतः द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब कबूतरों का संदेशवाहक के रूप में जोर-शोर से प्रयोग हो रहा था। उसी समय उन संदेशों को रोकने के लिए घुमंतू बाजों का प्रयोग कबूतरों का शिकार करने के लिए किया गया
3-इन्हीं खूबियों के चलते UAE ने बाज को अपना राष्ट्रीय पक्षी और शिकागो ने city bird बनाया है।
बाज का पुनर्जन्म
पुनर्जन्म तो मरने के बाद होता है। पर बाज एक ही जीवन में दो बार जन्म लेता है। एक जन्म अपनी मां से और दूसरा जन्म अपने साहस से। देखते हैं कैसे?
बाज की औसत आयु 70 वर्ष होती है। आसमान का बेताज बादशाह 40 वर्ष की आयु तक परेशान हो जाता है। शिकार करने में बहुत दिक्कत होती है। शिकार पकड़ने वाले पन्जे भारी और लचीले हो जाते हैं । शिकार पर मजबूत पकड़ नहीं बन पाती। पंख भी बहुत भारी हो जाते हैं। बाज की गर्दन पर पंखों का बोझ इतना ज्यादा हो जाता है कि बाज फुर्ती से अधिक ऊंचाई तक नही उड़ पाता। किसी तरह शिकार पकड़ भी ले तो मांस को चीरने वाली चोंच साथ नहीं देती। चोंच आगे बढ़कर नीचे की ओर झुक जाती है।
बाज के लिए विकल्प और उसका चुनाव
उम्र के चौथे शतक में अब, जब बाज के अपने अंग - पंख और पंजे साथ नहीं देते तब भी बाज के पास विकल्प होते हैं जीवन बिताने के।
1- बाज गिद्ध की तरह बचा हुआ त्याज्य मांस खाकर अपनी उम्र के 30 साल काटे और मृत्यु की प्रतीक्षा करे।
2- भूखे रहकर प्राण त्याग दे।
3- तीसरा और सबसे पीड़ादायक विकल्प - आत्म निर्माण का...ताकि शेष जीवन भी बादशाह की तरह जी सके। और हैरान कर देने वाली बात है कि पक्षीराज सबसे पीड़ादायक विकल्प चुनता है।
• अपने पुनर्जन्म के लिए बाज किसी निर्जन स्थान को चुनता है जहां पहुंचकर वह सबसे पहले पत्थर पर चोट मार-मार कर अपनी चोंच तोड़ देता है ।चोंच लहूलुहान हो जाती है। पीड़ा देती है। लेकिन नव निर्माण के लिए यह आवश्यक है जो की बाज करता है।
• अब बारी पंजों की । नई चोंच उगने के बाद बाज अपनी नई नवेली चोंच से लचीले पंजे नोच डालता है और प्रतीक्षा करता है नए पंजों के आने की।
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• नई पंजे भी आ जाते हैं। फिर पंखों को एक-एक करके अपने शरीर से अलग कर देता है और नए पंख भी आ जाते हैं।
इस तरह 40 वर्षीय बाज पुनः अपनी युवावस्था जैसी फुर्ती और तेजी प्राप्त कर लेता है। लेकिन मित्रों विचार कीजिए । इतना संघर्ष ...इतनी वेदना... आखिर किस लिए ? ताकि गरिमा पूर्ण तरीके से जीवन चलाया जा सके... ताकि बादलों से ऊपर जाया जा सके...ताकि उसे हमेशा बादशाह के रूप में ही पहचाना जा सके... ताकि मिले हुए जीवन को सही तरीके से जीने की संतुष्टि प्राप्त की जा सके।
हमारे पास बाज की तरह चोच ,पंख और पंजे नोचने का विकल्प तो नहीं है। पर विकल्प है आत्मनिर्माण का... सम्मान पूर्वक जीवन जीने का ....निरंतर आगे बढ़ने का।
चलिए देखते हैं आखिर बाज से ली गई सीख का प्रयोग हम अपने जीवन में कैसे करें?
Work while rest are resting
बाज अपने बच्चे को तब प्रशिक्षित करता है जब बाकी पक्षी के बच्चे आराम से घोसलों में दाना चूंग रहे होते हैं। उसी तरह हमारी जिम्मेदारी है कि अपनी भावी पीढ़ी को और खुद को सफलता के लिए तब भी तैयार करें जब बाकी प्रतियोगी आराम कर रहे हों। सामान्य काम को तो सब कर लेते हैं पर विशेष काम के लिए विशेष प्रयास भी चाहिए।
Come out of your comfort zone
विकल्प तो होते हैं बाज के पास। एक आरामदायक लेकिन अपमानपूर्ण जीवन या पीड़ादायक लेकिन गरिमापूर्ण जीवन...। प्रेरणा देने वाली बात ये है कि बाज वेदना पूर्ण लेकिन गरिमामय और सम्मान पूर्ण जीवन चुनता है। इसी तरह हमें भी चाहिए कि परिस्थिति चाहे जैसी भी हो। लोग चाहे जो भी कह रहे हों। हम वही करें जो करने योग्य हो । और उसे करने में हमें कितनी भी वेदना क्यों ना सहनी पड़े। हम उस वेदना को सहने के लिए तैयार रहें।
Pateince is key
जब बाज एकांतवास में भूखा-प्यासा रह कर , दर्द सहकर पुनर्निर्माण में लगा होता है। तो उसे 1 - 2- 3 या फिर 8 - 10 दिन नहीं लगते बल्कि 150 दिन लगते हैं। यानी कि 5 महीने ।ऐसे कठिन समय में बाज का एक ही साथी होता है धैर्य।
हमें भी जीवन में सफल होने के लिए धैर्य की रस्सी को थाम कर निरंतर अपने कार्य में लगे रहना चाहिए आखिर धैर्य ही सफलता की कुंजी है।
Story of a daughter-अर्शी का चक्रव्यूह
हमें भी जीवन में सफल होने के लिए धैर्य की रस्सी को थाम कर निरंतर अपने कार्य में लगे रहना चाहिए आखिर धैर्य ही सफलता की कुंजी है।
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