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चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की असली कहानी

रिवाल्वर दादी से एक मुलाकात

हाल ही में फिल्म "सांड की आंख" का ट्रेलर रिलीज हुआ जिसमें अभिनेत्री भूमि ने चंद्रो दादी का और अभिनेत्री तापसी ने प्रकाशी दादी का किरदार निभाया है।
                       
फिल्म सांड की आंख का पोस्टर

     आखिर क्या है चंद्रो दादी और प्रकाशी दादी की असली कहानी? जानते हैं-

चंद्रो तोमर और उनकी चाहत

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक गांव है जोहर। वहां पर एक चंद्रो तोमर नाम की महिला रहती हैं। जिनका जीवन सामान्य महिलाओं की तरह ही था। 60 वर्ष तक की उम्र  घर, परिवार और बच्चों की देखरेख में बीत गई। लेकिन चंद्रो दादी की इच्छा थी कि उनके परिवार की बेटियां साहसी और आत्मनिर्भर बने।

शूटिंग रेंज से पहली मुलाकात

          
बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने और सम्मान से जीने के लायक बनाने के उद्देश्य से चंद्रो अपनी 11 वर्षीय पोती शेफाली को लेकर शूटिंग रेंज में गई और वहां उसका एडमिशन करा दिया। वह रेंज में शूटिंग ,सीखने लगी। दादी रोज उसके साथ जाती बैठकर बच्चों का अभ्यास देखती और शेफाली के साथ घर आती ।
    1 दिन शेफाली रिवाल्वर लोड नहीं कर पा रही थी तो दादी उसकी मदद करने के लिए उठी और उसे समझाते हुए रिवाल्वर लोड की और निशाना लगा दिया। उनका पहला निशाना ही 10 में लगा । तो वहां के कोच फारुख और सीखने वाले बच्चे देखकर दंग रह गए। तब कोच फारूक ने कहा "दादी निशाना तुक्के से लग गया होगा। दोबारा लगाओ। " दादी ने दोबारा निशाना लगाया और वह भी ब्लेक सर्कल में ही लगा।

Story of eagle-बाज का पुनर्जन्म

       अब स्पष्ट हो चुका था कि निशाना तुक्के से नहीं लग रहा था बल्कि दादी की प्रतिभा से लग रहा था।  शूटिंग रेंज के मालिक डॉक्टर राजकुमार और कोच फारुख ने दादी को प्रेरित किया और कहा " दादी आप खेला करो । आप बहुत अच्छा करेंगी।" इस पर दादी ने कहा "कहां कर पाऊंगी ,  इतना बड़ा घर - परिवार है कोई बाधा डालेगा तो ?" तब डॉक्टर और कोच ने कहा कि आप चुपचाप आकर सीखा करिए हम किसी को नहीं बताएंगे।
       फिर क्या था ? दादी रोज सुबह जल्दी उठकर रेंज में शूटिंग अभ्यास करती। और रात में 12:00 बजे जब परिवार के सब लोग सो जाते तब बंद कमरे में बैलेंस बनाने का अभ्यास करती।  लेकिन समस्या यह यह थी कि बैलेंस बनाने के अभ्यास के लिए विशेष उपकरण तो थे नहीं। तो फिर कैसे किया अभ्यास करें?  पर कहते हैं ना-

                    जहां चाहा वहां राह


 चंद्रो दादी ने दीवाल पर निशान बना लिया और जग में पानी भरकर 1 घंटे तक रोज शूटिंग पोजीशन में खड़े रहने का अभ्यास करती।
                     
बैलेंस का अभ्यास करती चंद्रो दादी

जब परिवार को पता चला 

दादी का अभ्यास जारी रहा ।अब बारी प्रतियोगिता की थी ।लेकिन घर में तो किसी को पता नहीं था इसलिये सबसे छिपके शूटिंग कंपटीशन में प्रतिभागित किया और सिल्वर मेडल जीता। मेडल घर में चुपचाप से छुपा कर रख दिया। किसी को कानो-कान खबर तक नहीं होने दी। लेकिन अगले ही दिन शूटर दादी की फोटो अख़बारों में सुर्खियां बटोर रही थी।
 मित्रों , दादी ने अपने घर का अख़बार छुपा दिया लेकिन एक अख़बार तो आता नहीं है सो दादी के परिवार के लोगों को पता लग गया। उन्होंने दादी से पूछा तो दादी को डर तो लग रहा था लेकिन सोचा 'एक सच छुपाने के लिए 100 झूठ बोलने से अच्छा है सच बोल दो।'
      चंद्रो दादी ने अपने परिवार को मेडल दिखाया और बता दिया कि वह रोज शूटिंग रेंज में शूटिंग अभ्यास करने जाती हैं।कुछ लोगों ने नाराजगी जताई और कुछ ने सराहा। लेकिन प्रसन्नता की बात यह है कि चंद्रो के बेटों ने चंद्रो का साथ दिया

बन गई जेठानी देवरानी की जोड़ी

                     
प्रकाशी तोमर और चंद्रो तोमर

अब तो सब चंद्रो की शूटिंग के बारे में जानने लगे थे । चंद्रो के देवरानी के बेटे ने अपनी मां से कहा "आप भी ताई के साथ शूटिंग सीखा करो।"और फिर प्रकाशी तोमर यानी चंद्रो की देवरानी भी साथ में ही शूटिंग का अभ्यास करने लगी।

लोगों के तंज 

अब  चंद्रो और प्रकाशी को अब किसी से छिपने की जरूरत नहीं थी लेकिन जब लोग 70 वर्षीय चंद्रो और 65 वर्षीय प्रकाशी को शूटिंग का अभ्यास करते देखते ,तो तंज कसते। कोई कहता "देखो बुढ़िया को कारगिल जाना है।" तो कोई कहता "पोते-पोती खिलाने की उम्र में गोली चलाएंगी।" तो कोई शहीदों के नाम लेकर पूछता "वह तो चला गया तुम कब जाओगी?" लेकिन दादी चुपचाप अभ्यास करती।

अंग्रेजी की समस्या?

        चंद्रो और प्रकाशी घरेलू महिलाएं थीं। उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी। तो अंग्रेजी के शब्द जैसे बुल-आई , शूटिंग, टेन, सर्कल नहीं समझ में आते थे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और शब्दों को ध्यान से सुना फिर अपनी भाषा में समझा और सीख लिया। वह बुल-आई को "सांड की आंख" कहती थीं।और यहीं से उनकी ज़िंदगी पर बनी फिल्म का टाइटल लिया गया है।

पहनावे को चुनौती

चंद्रो और प्रकाशी दोनों ही घागरा , कुर्ता पहनती और हमेशा सिर पर चुनरी ओढे रखती। एक बार बाहर जाने से पहले कोच ने कहा "दादी यह गेम तो सब पैंट शर्ट पहन कर खेलते हैं।" इस बात पर कोच को जवाब मिला "खेलते होंगे बात तो तब है, जब घाघरा वाली निशाना लगावेगी" और दोनों दादीयों ने हमेशा अपने पहनावे में ही सहजता के साथ शूटिंग में धमाल मचाया।

जब प्रकाशी दादी ने बेस्ट शूटर को हराया

अभी प्रकाशी दादी को शूटिंग सीखते हुए 1 साल ही हुआ था। और उनका मुकाबला दिल्ली में अनुभवी शूटर डॉक्टर राजपाल धीरज से था। वह भी 32 बोर की रिवाल्वर के साथ जिसे उन्होंने अभी तक छुआ भी नहीं था। दादी नर्वस हो रही थी। तब कोच ने उनका मनोबल बढ़ाया और कहा " दादी आप कर सकती हो और अगर आज आप ने कर लिया तो बागपत के बहुत से बच्चे आगे बढ़ेंगे और आपसे प्रेरणा लेंगे" फिर क्या था ? दादी ने ध्यान से डॉ धीरज को शूटिंग करते हुए देखा। और उसी ऑब्जर्वेशन के आधार पर अपना निशाना लगा दिया। कमाल की बात तो यह है कि राजपाल धीरज को इस प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल मिला और पहली बार 32 बोर रिवाल्वर चलाने वाली प्रकाशी दादी को गोल्ड मेडल।

Magic of will power- विल्मा रुडोल्फ

मेडलों की बारिस और शूटिंग की प्रेरणा

                       


यूं तो शुरुआती प्रतियोगिता में ही दादियों ने मेडल जीते ।लेकिन वर्ष 2012 में मेडलों की झमाझम बारिश हुई और यह बारिश 10-12 वर्ष के निरंतर अभ्यास का परिणाम थी।
     अब तक दोनों दादी 25 से ज्यादा बार राष्ट्रीय शूटिंग प्रतियोगिता जीत चुकी हैं। अब लोग दादी की उम्र का मजाक नहीं बनाते बल्कि छठे दशक के बाद भी उनके जज्बे ,उनकी लग्न से प्रेरणा लेते हैं और दादी को रिवाल्वर दादी और शूटर दादी बुलाते हैं।
जब चंद्रो दादी ने शूटिंग सीखना शुरू किया था तब वहां केवल चार लड़के और दो लड़कियां ही सीखने आते थे लेकिन आज तोमर परिवार के आधे से ज्यादा बच्चे शूटिंग सीखते हैं। इतना ही नहीं दादी से प्रेरित होकर बागपत के 400 से 500 बच्चे शूटिंग का प्रशिक्षण ले रहे हैं। और चंद्रो दादी और प्रकाश जी दादी दोनों ही नियमित बच्चों को शूटिंग के गुर सिखाने जाती हैं।

                         
दादी बच्चों को सिखाते हुए

 जीवन की सीख

मित्रों, अब तक हमने चंद्रो और प्रकाशी दादी के दुनिया की सबसे उम्र दराज महिला शार्प शूटर बनने की कहानी देखी। चलिए अब देख लेते हैं कि हम रिवाल्वर दादी और शूटर दादी से क्या सीख ले कर अपनी सफलता पथ को आसान बना सकते हैं?

1- सीखने की कोई उम्र नहीं होती

चंद्रो दादी का जन्म सन 1932 में हुआ और प्रकाशी दादी का 1937 में हुआ था। जब उन लोगों ने शूटिंग की शुरुआत की और अंग्रेजी सीखी तब उनका नाती-पोतों से भरा हुआ परिवार था। जिस उम्र में लोग चलने-फिरने को टालते हैं ।जीवन पूजा, घर ,टीवी और बिस्तर के सहारे काटते हैं।
     तब दोनों दादी ने एक नए सफर की शुरुआत की ऐसा सफर....जिस पर ज्यादातर पुरुषों का वर्चस्व माना जाता है। एक ऐसे सफर की शुरुआत की....जो उनके लिए एकदम नया था। ना सिर्फ शुरुआत की बल्कि प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि और सफलता के शिखर पर पहुंची और साबित कर दिया कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। बस आवश्यकता सच्ची लगन और अपने प्रति ईमानदार होने की है।

2- अपनी परंपरा और संस्कृति से प्यार

आपको याद है? जब कोच ने कहा "दादी यह गेम तो सब पैंट शर्ट पहन कर खेलते हैं।" तो दादी ने उत्तर दिया "बात तो तब है जब घाघरा वाली निशाना लगाएं।"
    दादी ने हमेशा वही पहना जो वह पहनना चाहती थीं और सफलता का परचम लहरा कर बन गई *घागरे वाली शूटर। मित्रों , मेरे ख्याल से ही तभी संभव हो सका जब दादी को शूटिंग और संस्कृति दोनों से प्यार था।
        यह सच है कि हम स्वतंत्र हैं अपनी जीवन शैली और पहनावे के चुनाव के लिए। जो  बहुत अच्छी बात है पर परंपरा, पहनावा या संस्कृति हमारी पहचान है मार्ग की बाधा नहीं ।

3- बाधाओं में फसे नहीं बल्कि निरंतर लक्ष्य पर फोकस करें

     कितना अजीब था? जब चंद्रो दादी ने पहला मेडल जीता और अखबार की सुर्खियां बटोरी तो कुछ लोगों ने एतराज किया और कुछ ने सराहा। लेकिन उसी समय समाज के कुछ लोग कटीले शब्दों से तंज कसते रहे फिर भी दादी आगे बढ़ती रही। दादी कहती हैं। " मैंने अपने कानों को बहरा कर दिया ,सहनशक्ति विकसित की और मुंह में राम, हाथ में काम को अपना मंत्र बनाकर लगी रही।"
    दोस्तों ,मुझे इस समय गाने की दो लाइन याद आ रही हैं-"कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना" पर दादी से तो यही सीखने को मिलता है कि लोगों को तंज कसना है , तो कसने दो। कुछ कहना है , तो कहने दो । हमें तो वही करना चाहिए जो करने लायक है यानी अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना।

4- दादी का बेटियों को संदेश

                 
दादी अपने घर में काम करती हुई

शूटर दादियों का विशेष रुप से बेटियों से कहना है "  काम तो करना ही है। जिम्मेदारियां तो निभानी ही है। हमने किया है आप भी करिये, लेकिन 24 घंटे में से कुछ समय ऐसा जरूर निर्धारित करें। जब आप वह काम करें जो आप करना चाहते हैं और जिससे आपकी पहचान बने।


दोस्तों हम आपकी प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतजार करते हैं। तो देर किस बात की? अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। https//successmitra4u.blogspot.com को अधिक से अधिक share करें। लाइफ को आसान और मन को मजबूत बनाने वाले प्रेरणादायक प्रसंगों को पढ़ने के लिए blog को follow करें और subscribe करना न भूलें।
      


Comments

Unknown said…
Humanity is an only the mood of Relationship

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