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Karoly takacs- story in hindi

    Man with only hand-एक विश्व विजेता

क्या आपको भी लगता है कि जब कुछ करना चाहते हैं कोई ना कोई ऐसी परिस्थिति बन जाती है जो हमें अपने सपनों की उड़ान  भरने से रोक देती है? कुछ ना कुछ ऐसा जरूर हो जाता है कि हम विवश हो जाते हैं सोचने पर ' किस्मत के आगे किसकी चली है ?' आपको अजीब लग रहा है ना ?आखिर किस्मत से कौन जीता है? वही तो एक चीज है जिससे सबको  हारना ही पड़ता है। लेकिन दोस्तों आज एक ऐसे शख्स से हम मिलने वाले हैं जिसने समय ,परिस्थिति और किस्मत , सबको मात देकर सपनों की ताकत को साबित किया है। मिलते हैं करोली टेक्सस से।

करोली के बारे में


जन्म       -21 जनवरी 1910 हंगरी
व्यवसाय - फौजी
खेल       - पिस्टल शूटिंग
मृत्यु       - 5 जनवरी 1976, हंगरी

     करोली एक फौजी और उसका सपना

                     
Image credit lifehackshindi

'सपने, जो ना सिर्फ देखे जाए बल्कि जिन्हें जिया जाए।'


 करोली फौज में नौकरी किया करते थे । लेकिन साथ ही उन्हें पिस्टल शूटिंग का शौक था।  उनका सपना था अपने हाथ को बेस्ट शूटिंग हैंड बनाना। जिसके लिए वह निरंतर परिश्रम करते। हर वह काम करते जो उनकी सफलता के लिए जरूरी होता।
      26 साल की उम्र तक करौली अपने सपने के बेहद करीब पहुंच चुके थे। अब तक वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं को जीत चुके थे। अब बारी ओलंपिक गेम्स की थी। करोली के  प्रशंसकों को यकीन था कि करोली अपना कमाल जरूर दिखाएंगे।

करोली को ओलम्पिक से बाहर कर दिया गया

सारी तैयारियां हो चुकी थीं। लेकिन करौली को समर ओलम्पिक से बाहर कर दिया गया क्योंकि करौली हवलदार थे। और उस समय तक केवल कमीशन अधिकारियों को ही प्रतियोगिता में भाग लेने दिया जाता था। हालांकि यह प्रतिबंध बर्लिन गेम्स के बाद हटा दिया गया। अब करौली की निगाहें समर ओलंपिक्स 1940 पर थीं।

 दुनिया के best shooting hand में ग्रेनेड फट गया

                         
Image credit-pixbaby.com

1 दिन करौली सेना में प्रशिक्षण ले रहे थे तभी उनके बेस्ट शूटिंग हैंड में ग्रेनेड फट गया। करौली के हाथ के साथ-साथ उनके सपने के चिथड़े-चिथड़े  उड़ गए।  सालों का परिश्रम एक झटके में खत्म। खैर! किसी ने कहा है ना

      "  वह पथ क्या पथिक, कुशलता क्या।

           जब पथ पर बिखरे शूल ना हो।।

          नाविक की धैर्य परीक्षा क्या ।

          जब धारा ही प्रतिकूल ना हो।।"

करोली का निर्णय

सोच कर देखिए मित्रों - हम कैसे सोचते हैं जब परिस्तिथि हमारे विरुद्ध हो? हम मान लेते हैं कि 'हमारी तो किस्मत ही हमारे साथ नहीं है।'  लेकिन एक लड़का जो जवान है जिसने सपने को पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दिए हों। और इस लायक बन भी गया लेकिन अचानक सब बिखर जाता है। क्या बीती होगी उस पर ? लेकिन उस लड़के ने निर्णय लिया कि 'मुझे वह नही देखना जो  मेरे पास नही है बल्कि वो देखना है जो मेरे पास है।'
    कैरोली  ने अपने सपने को छोड़ा नहीं बल्कि संकल्प लिया अपने बाएं हाथ को वर्ल्ड का बेस्ट शूटिंग हैंड बनाने का। और फिर जीरो से शुरुआत की। जिस हाथ से लिखना और खाना तक मुश्किल था। उसे वर्ल्ड का बेस्ट शूटिंग हैंड बनाने के लिए ट्रेनिंग शुरू कर दी। ऐसे ही किसी जज्बे के लिए कवि रामधारी सिंह दिनकर जी ने ने कहा है 

               सच है विपत्ति जब आती है ,
                  कायर को दहलाती है।
                  सूरमा नहीं विचलित होते ,
                 क्षण एक नहीं धीरज खोते।

जब समय बाधा बना

दाएं हाथ को खोने को बाद करौली  की वाँए हाथ को ट्रेन करने की मेहनत रंग लाई।लेकिन समय ने साथ नहीं दिया । 1940 में होने वाला समर ओलंपिक द्वितीय विश्व युद्ध की वजह से कैंसिल हो गया। फिर भी करोली अगले मौके की प्रतीक्षा के साथ तयारी करने लगे। 
          लेकिन 1944 समर ओलंपिक भी कैंसिल हो गया । लेकिन करोली ने अब भी हार नही मानी । करोली की उम्र बढ़ रही थी जो स्वयं में एक चुनौती थी क्योंकि ज्यो-ज्यो उम्र बढ़ती है नये लोगो के साथ फाइट करना मुश्किल हो जाता है । लेकिन करौली को किसी और की तरफ देखना ही नहीं था उसका पूरा ध्यान तो सिर्फ अपने सपने पर था।

1948 का समर ओलंपिक और करोली

सन 1948 लंदन में समर ओलंपिक हो रहे थे। जब कैराली वहां पहुंचे तो उस समय के  वर्ल्ड के बेस्ट शूटर अर्जेंटीना के कार्लोस एनरिक साज वोलेंते ने करौली से कहा "मैंने आपके साथ होने वाली दुर्घटना के बारे में सुना है कितनी बड़ी बात है कि इसके बाद भी आप हम सब का मनोबल बढ़ाने आए हैं?"  करोली ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया "मैं आपका मनोबल बढ़ाने नहीं आया बल्कि सीखने का वर्ल्ड रिकॉर्ड स्थापित करने आया हूं।" और कड़ी प्रतिद्वंदिता के बाद करोली ने स्वर्ण पदक जीत लिया।
         अभी करोली न ही रुके और न ही थके। बल्कि अगले समर ओलंपिक 1952 में भी अपने बाएं हाथ से गोल्ड मेडल जीतने में सफल रहे । इस बार भी करौली के प्रतिद्वंदी एनरिक साज थे। करोली के जीतने के बाद उन्होंने आकर बधाई देते हुए करौली से कहा "आप जीतने के लिए पर्याप्त सीख चुके हैं । अब समय मुझे सिखाने का है।"

Story of eagle-बाज का पुनर्जन्म

आगे का सफर

करौली ने समर ओलंपिक में 2 बार लगातार गोल्ड मेडल जीता वह भी अपने बाएं हाथ से। इससे ज्यादा बड़ी बात यह है की करौली ने विपत्ति में अभी अपने सपने को ना सिर्फ जिंदा रखा बल्कि उसे सच में तब्दील कर दिया। अब करौली ने शूटिंग प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया यानी कि वह शूटिंग कोच बन गए । और एक फौजी के तौर पर लेफ्टिनेंट कर्नल की पोस्ट तक पहुंचे।


चलिए दोस्तों जानते हैं करौली की कहानी से क्या सीख सकते हैं?  जिससे हम जीवन की समस्याओं जीतने की शक्ति प्राप्त कर सकें।

सकारत्मक सोच की शक्ति की

 करौली के हाथ में ग्रेनेड फटने के बाद वह भी शांत होकर अपना जीवन यापन कर सकते थे। लेकिन सवाल ये है कि करोली को अपने बाएं हाथ को ट्रेन करने का निर्णय लेने की शक्ति कहाँ से मिली? 
                 दोस्तों ये शक्ति मिली सकारात्मक सोच से। हमें भी जीवन में हमेशा अपना दृष्टिकोण, अपनी सोच सकारात्मक रखनी चाहिए । ताकि हम सही दिशा में सोच सकें आखिर जब हम सोच सकेंगे तभी तो कर सकेगें।

जो आप कर सकते हैं उसी पर फोकस करें

1940 और 1944 में समर ओलंपिक कैंसिल होने के बाद करौली ने हार नहीं मानी । न ही थक कर बैठ गए। बल्कि निरंतर अभ्यास करते रहे। उसी तरह हमें जीवन में उन चीजों पर फोकस नहीं करना चाहिए जो हम नहीं बदल सकते बल्कि उन पर फोकस करना चाहिए जो हम कर सकते हैं। और निसंदेह हमारा कर्म करते रहना व्यर्थ नहीं जाएगा। 


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