मानवीय साहस की अद्भुत मिसाल-अरुणिमा सिन्हा
दोस्तों हम बात कर रहे थे एवरेस्ट की बेटी अरुणिमा सिन्हा की। कैसे उस बेटी ने हिम्मत रखी ? कैसे उस बेटी ने ने दर्द की इंतहा को पार किया?
वालीबॉल प्लेयर्स माउंटेनियर बनने की घटना
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चलिए अब जानते हैं अरुणिमा की आगे की यात्रा के बारे में-
अरुणिमा ने ना सिर्फ everest पर विजय प्राप्त की बल्कि साबित कर दिया मानसिक मजबूती ,दृढ़ निश्चय और इमानदारी भरे प्रयास आपको सफलता के शिखर पर पहुंचा देते हैं। मित्रों किसी व्यक्ति की सफलता में उसकी भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है लेकिन परिवार का सहयोग सफलता में backbone का काम करता है । अरुणिमा ने जब अपने भाई साहब को बताया कि वह everest summit करना चाहती है । तो उन्होंने यह सोचने की वजाय- कि लड़की आगे जीवन यापन कैसे करेगी? कहा "चलो , मैडम बछेंद्री पाल से मिलते हैं । जिन्होंने 1984 में everest summit किया था ।" अरुणिमा अस्पताल से सीधे बछेंद्री मैडम से मिलने गई जबकि उस समय अरुणिमा के दाएं पैर में stiches लगी हुई थी । अरुणिमा को देखकर बछेंद्री पाल की आंखों में आंसू आ गए । उन्होंने अरुणिमा से कहा "ऐसे हालात में एवरेस्ट जैसे पहाड़ के बारे में सोचा तो तूने अपने अंदर एवरेस्ट फतह कर लिया अब तो बस दुनिया के लिए करना है।" अरुणिमा के परिवार के बाद बचेंद्री पाल ऐसी पहली शख्स थी जिन्होंने विश्वास किया कि अरुणिमा कर सकती है।
प्लानिंग हो गई । मैम मिल गई । लेकिन बछेंद्री मैम ने road head पर पहुंचने पर कहा "अरुणिमा सोचने से कुछ नहीं होता प्रूफ करो कि तुम कर सकती हो।" अरुणिमा ने कहा "मैम , मुझे बस एक मौका चाहिए।" लेकिन वास्तविकता का धरातल सबके लिए एक जैसी कसौटी रखता है। road head से base camp तक पहुंचने में लोगों को 2 मिनट लगता पर अरुणिमा को 3 घंटे लगते थे। क्योंकि अरुणिमा के दाएं पैर की हड्डियां भी जुड़ी नहीं थी और बायें पैर में आर्टिफिशियल लेग लग चुका था लेकिन घाव तो नए थे। जोर से दबाने पर खून आने लगता। सब कहते" मैडम आप आराम से आओ" लेकिन अरुणिमा को लगता "यह क्या है? मैंने Everest summit करने का सोचा है और मैं इन लोगों के बराबर भी नहीं चल पा रही हूं।" फिर संकल्प लिया - कोई बात नहीं 1 दिन ऐसा आएगा कि मैं इनसे पहले जाऊंगी। और सच में 8 महीने बाद पूरा बैग उठाकर base से सब साथ निकलते और टॉप पर अरुणिमा पहले पहुंचती । अरुणिमा को पीछे देख कर खुशी होती लेकिन सबसे ज्यादा खुशी तब होती जब लोग पूछते " मैडम खाती क्या हो एक पैर नहीं है फिर भी सबसे आगे आ जाती हो"? अरुणिमा मुस्कुराती और कहती " मैं अपने सपने की 1 dose रोज लेती हूं ।" फिर अरुणिमा को स्पॉन्सरशिप मिली ।
अरुणिमा की journey में सबसे बड़ा challenge था लोगों को समझा पाना कि मैं कर सकती हूं।
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दिलेर अरुणिमा सिन्हा
समिट के दौरान एक शेरपा साथ रहता है। अरुणिमा के शेरपा को पता चला कि अरुणिमा का एक पैर prosthetic है दूसरे में rod पड़ी है। वह साथ जाने के लिए तैयार नहीं था। उसने बोला "यह तो मरेगी साथ में मेरी भी जान जाएगी।" लेकिन बछेंद्री मैम और अरुणिमा- दोनों ने किसी तरह समझाया तो वह बड़ी मुश्किल से तैयार हुआ । ग्रुप सिक्स के लोगों में rocky area में अरुणिमा सबसे पहले पहुचती थी। पर जैसे ही green एंड blue icing में पहुचे prosthetics leg स्लिप करने लगा। crampon से front pointing मारती तो लेफ्ट में दर्द होता जो बर्दाश्त कर लेती लेकिन prothestic leg मुड जाता । शेरपा बोला "अरुणिमा नहीं हो सकता , जबरदस्ती मत करो।" तब भारत की साहसी अरुणिमा ने कहा "यह मेरा पहले मुझे मालूम है कैसे चलेगा ?" अंत में 2-3-4-5 बार प्रयास करने पर बर्फ टूट - टूट कर निकलती थोड़ी जगह होने पर अरुणिमा पैर रखती और आगे बढ़ती । camp 3 तक तो फिर भी ठीक था लेकिन जब south col summit के लिए निकली तो जिधर headlight जाती उधर (dead bodies) मृत शरीर दिखते। कुछ मिनट अरुणिमा वहां रुकी और खड़े होकर प्रार्थना की "अगर आप सबने एवरेस्ट सबमिट कर लिया, तब तो ठीक है लेकिन अगर नहीं कर पाए तो मैं आप सबके लिए everest summit करूंगी और जिंदा वापस जाऊंगी। डेड बॉडी को लांग कर ही आगे बढ़ना पड़ा । क्योंकि रास्ता वहीं से था । थोड़ा आगे बढ़ी शेरपा ने जोर से झटका दिया और कहा "अरुणिमा वापस चलो तुम्हारा ऑक्सीजन खत्म हो रहा है ।बाद में कर लेना summit" अरुणिमा नहीं मानी। तब शेरपा ने समझाया "अगर जान रहेगी तो फिर हो जाएगा।" लेकिन अरुणिमा को साफ - साफ दिख रहा था कि वह लक्ष्य के बहुत करीब है और वह जानती थी कि लाइफ में बार-बार चांस नहीं मिलते। यह गोल्डन चांस है अगर इसे खो दिया तो सपना अधूरा रह जाएगा और फिर कभी भी स्पॉन्सरशिप नहीं मिलेगी । अरुणिमा ने शेरपा को नकारते हुए आगे बढ़ना शुरू किया । डेढ़ घंटे बाद अरुणिमा TOP OF THE World - EVERREST पर थी।
थोड़ी ही दूर चलने पर अरुणिमा की ऑक्सीजन पूरी तरह खत्म ....अरुणिमा नीचे गिर पड़ी.... शेरपा ने कहा-" अरुणिमा उठ ....खड़ी हो...मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि तू एवरेस्ट summit कर पाएगी अब जल्दी उठ.. जिंदा चल। " लेकिन अरुणिमा नहीं उठ पा रही थी। पर कहते हैं -
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अरुणिमा सिन्हा दुनिया के सर्वोच्च शिखर पर तिरंगा के साथ
हालांकि अरुणिमा सबको बताना चाहती थी कि मैं top of the world पर हूं ।तो उसने शेरपा से कहा "मेरा फोटो खींच लो।" तो वह नाराज हुआ बोला "एवरेस्ट सम्मिट हो गया। ऑक्सीजन खत्म हो रहा है जल्दी नीचे चलो।" पर अरुणिमा तो पूरी तैयारी के साथ गई थी।2,3,4 बैटरी, 2 कैमरे ताकि अगर एक काम ना करें तो दूसरा काम आ जाएगा। अरुणिमा अपनी जिद पर अड़ी थी फिर शेरपा ने अरुणिमा की तिरंगे के साथ फोटो ली। पर अगली बार जब अरुणिमा ने कहा "भाई , एक वीडियो और बना ले। तो शेरपा बहुत जोर से चिल्लाया "मरो तुम मैं जा रहा हूं ।" इतने पर अरुणिमा ने कहा " भाई अगर मैं जिंदा वापस ना जाऊं तो यह वीडियो मेरे देश के युवाओं तक पहुंचा देना ।" शेरपा ने वीडियो बनाया और फिर तेजी से नीचे उतरने लगे। पर इंतिहान तो अभी बाकी था।थोड़ी ही दूर चलने पर अरुणिमा की ऑक्सीजन पूरी तरह खत्म ....अरुणिमा नीचे गिर पड़ी.... शेरपा ने कहा-" अरुणिमा उठ ....खड़ी हो...मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि तू एवरेस्ट summit कर पाएगी अब जल्दी उठ.. जिंदा चल। " लेकिन अरुणिमा नहीं उठ पा रही थी। पर कहते हैं -
जो खुद की मदद करता है
खुदा भी उसकी मदद करता है
उसी वक्त एक ब्रिटिश क्लाइंबर अपना एक ऑक्सीजन सिलेंडर वहां फेंक कर वापस नीचे जा रहा था। मौसम खराब हो चुका था। शेरपा ने जल्दी से दौड़कर ऑक्सीजन सिलेंडर अरुणिमा के लगाया और वह वापस नीचे उतरने लगी।
अरुणिमा सिन्हा अपने शेरपा के साथ
Camp 4 वापस पहुंचने पर लोगों को 15 से 16 घंटे लगते हैं पर अरुणिमा को 28 घंटे लगे थे । सब पर्वतारोही मान चुके थे कि अब अरुणिमा कभी वापस नहीं आएगी लेकिन जैसे ही अरुणिमा ने साउथ कॉल पहुंचकर पहुंचकर टेंट का zip खोला तो हर तरफ अरुणिमा के लिए जश्न मनाया जाने लगा । है न मानवीय साहस की अद्भुत मिसाल!
दोस्तों अरुणिमा ने अपनी everest summit के लम्हों को एवरेस्ट की journey के दौरान शब्दों में पिरोया है।आज ये लम्हे किताब बन कर हमारे बीच हैं। अरुणिमा की पुस्तक का नाम है "एवरेस्ट की बेटी" जो इंग्लिश ,मराठी, हिंदी सहित अन्य कई भाषाओं में भी अनूदित है । अरुणिमा का सफर सभी महाद्वीपों की हाईएस्ट पीक पहुंचने तक जारी रहा। हर पर्वत फतह करने के बाद अरुणिमा विकलांग लोगों के लिए खेल प्रशिक्षण संस्था भी चला रही हैं।
प्यारे दोस्तों अरुणिमा की कहानी मुझे अब तक सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली कहानियो में से एक है। मुझे उम्मीद है आपको भी प्रेरणा मिली होगी । इसी प्रेरणा को आगे पहुंचाने के लिए
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