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Showing posts from October, 2019

इस दिवाली अपने राम को समझें

रामलला को समझने का सफर इसमें अचंभित होने वाली क्या बात है। मैं हम सबके उन्हीं राम की बात कर रही हूं। जिनका वर्णन पूजनीय तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में किया है। जी हां...वही राम जिनके घर वापसी की खुशी आज भी हम दिवाली के रूप में मनाते हैं ।..बिलकुल सही.... हम सबके वही राम... जिन्हें दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण में देखने के लिए हम पड़ोसियों के घर जाते थे।                          Imagecreditprinterest एक किरदार जो भगवान बन गया चलिए दोस्तों, दूरदर्शन की रामायण के राम से जुडी एक घटना आपके साथ शेयर करते हैं।        जब दूरदर्शन पर रामायण आती थी।  उस समय का सबसे लोकप्रिय किरदार यानी...राम का किरदार अरुण गोविल जी ने निभाया था। और लोग उस किरदार से इतनी गहराई से जुड़ गए थे कि अरुण गोविल को ही राम समझने लगे थे । Magic of will power- विल्मा रुडोल्फ      एक बार अरुण गोविल अपनी पत्नी के साथ कहीं जा रहे थे और रास्ते में उनकी गाड़ी खराब हो गई। राम का किरदार निभाने वाले अरुण ...

चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की असली कहानी

रिवाल्वर दादी से एक मुलाकात हाल ही में फिल्म " सांड की आंख" का ट्रेलर रिलीज हुआ जिसमें अभिनेत्री भूमि ने चंद्रो दादी का और अभिनेत्री तापसी ने प्रकाशी दादी का किरदार निभाया है।                         फिल्म सांड की आंख का पोस्टर      आखिर क्या है चंद्रो दादी और प्रकाशी दादी की असली कहानी? जानते हैं- चंद्रो तोमर और उनकी चाहत उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक गांव है जोहर। वहां पर एक चंद्रो तोमर नाम की महिला रहती हैं। जिनका जीवन सामान्य महिलाओं की तरह ही था। 60 वर्ष तक की उम्र  घर, परिवार और बच्चों की देखरेख में बीत गई। लेकिन चंद्रो दादी की इच्छा थी कि उनके परिवार की बेटियां साहसी और आत्मनिर्भर बने। शूटिंग रेंज से पहली मुलाकात            बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने और सम्मान से जीने के लायक बनाने के उद्देश्य से चंद्रो अपनी 11 वर्षीय पोती शेफाली को लेकर शूटिंग रेंज में गई और वहां उसका एडमिशन करा दिया। वह रेंज में शूटिंग ,सीखने लगी। दादी रोज उसके साथ जाती ब...

Karoly takacs- story in hindi

    Man with only hand-एक विश्व विजेता क्या आपको भी लगता है कि जब कुछ करना चाहते हैं कोई ना कोई ऐसी परिस्थिति बन जाती है जो हमें अपने सपनों की उड़ान  भरने से रोक देती है? कुछ ना कुछ ऐसा जरूर हो जाता है कि हम विवश हो जाते हैं सोचने पर ' किस्मत के आगे किसकी चली है ?' आपको अजीब लग रहा है ना ?आखिर किस्मत से कौन जीता है? वही तो एक चीज है जिससे सबको  हारना ही पड़ता है। लेकिन दोस्तों आज एक ऐसे शख्स से हम मिलने वाले हैं जिसने समय ,परिस्थिति और किस्मत , सबको मात देकर सपनों की ताकत को साबित किया है। मिलते हैं करोली टेक्सस से। करोली के बारे में जन्म       -21 जनवरी 1910 हंगरी व्यवसाय - फौजी खेल       - पिस्टल शूटिंग मृत्यु       - 5 जनवरी 1976, हंगरी      करोली एक फौजी और उसका सपना                       Image credit lifehackshindi 'सपने, जो ना सिर्फ देखे जाए बल्कि जिन्हें जिया जाए।'  करोली फौज में नौकरी किया ...

Story of eagle- बाज का पुनर्जन्म

आखिर क्यों नील गगन का बादशाह खुद को लहूलुहान कर देता है? हम सभी जीवन में कभी ना कभी निराशा का अनुभव करते हैं ...थक जाते हैं... जीवन बोझ लगने लगता है ...विचारों और शरीर का समन्वय नहीं हो पाता... आप सोच रहे होंगे कैसी बात कर रही हूं मैं ? उम्र के एक मोड़ पर सबके साथ ही ऐसा होता है और फिर जिस बात का समाधान ही ना हो उस पर कैसा चिंतन ?           पर समाधान है दोस्तों, चाहिए आपको? तो चलिए मिलते हैं - उस अद्भुत बादशाह से। जिसे हमने या आपने नहीं चुना बल्कि प्रकृति ने बादशाह बनाया है । मिलते हैं पक्षीराज बाज से-                     Image credit-13abc.com 'जब तूफान आता है और सब पक्षी अपना आशियां ढूंढ रहे होते हैं तब बाज अपने पंखों को फैला बादलों से ऊपर उड़ रहा होता है।'       आपको क्या लगता है प्रकृति का मन किया और बना दिया बादशाह....बाज को परीक्षा नहीं देनी पड़ती ? पर दोस्तों प्रकृति यूं ही किसी को कुछ नहीं दे देती बल्कि उसके लिए उपयुक्त पात्र बनना होता है। बाज को भी ट्रैनिंग लेनी होती है।...

सिंधुताई सपकाल - mother of orphans

    जलती अर्थी पर रोटी सेक कर खाने वाली स्त्री को आखिर क्यों चार राष्ट्रपतियों ने सम्मानित किया?               मंजिल बहुत दूर है ,जाना वहां जरूर है                        रास्ता मुश्किल है ,मौत भी मंजूर है।   दूसरों के लिए जीने का ऐसा अनोखा जज्बा   जिंदगी तो सभी जीते हैं परस्तिथितिवश संघर्ष भी करते हैं। पर जीने का ऐसा जज्बा। जिसके खुद के पास खाने को निवाला ना हो, तन पर कपड़ा ना हो , सिर पर छत ना हो लेकिन बेसहारों को सहारा दे । वो भी अपनी संतान को त्याग कर हजारों बच्चों की मां बन जाए। ऐसा साहस सहज देखने को नहीं मिलता। आज मिलते हैं महाराष्ट्र की माई सिंधु सपकाल से।                       अनाथों की माँ चिन्दी का बचपन 14 नवंबर 1948 को महाराष्ट्र के एक गरीब परिवार में लड़की का जन्म हुआ। जिसका स्वागत 'चिंदी' नाम से किया गया। चिंदी अर्थात फटा हुआ कपड़ा, चिंदी अर्थात कपड़े के ऐसे चिथड़े जिन्हें कोई चाहता...