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अर्शी का चक्रव्यूह

अर्शी के पापा बेहद खुश थे| उनके जीजा जी ने  अर्शी के लिए जो रिश्ता बताया था, उन लोगों ने अर्शी को पसंद कर लिया और अर्शी के परिवार में भी तो सब यही चाहते थे |आखिर लड़के के पिता अधिकारी थे लड़का भी सरकारी नौकरी कर रहा था संपन्न परिवार का लाडला बारिश-* वंश|

         लेकिन अर्शी के पापा को चिंता थी कि  उनकी छोटी सी दुकान चलाने के साथ की हुई पूरे जीवन की बचत भी शायद लड़के वालों के लिए अपर्याप्त रहेगी| पर अर्शी की  मां  ने पापा को समझाते हुए कहा" एक बार बात करके देखने में क्या हर्ज है अरे !अधिकारी हैं तो क्या हुआ? उन्हें अपनी अर्शी पसंद है |हो सकता है वह लोग पैसे से ज्यादा अपनी पसंद की लड़की को अहमियत दें| "  अर्शी के पिता ने कहा "ठीक कह रही हो लड़की  बाप हूं, कोशिश तो करनी ही पड़ेगी फिर तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती| मेरे पास कौन सी नौकरी है |कल को कुछ हो गया तो कौन शादी करेगा   मेरी बिटिया की ?अर्शी की मां ने कहा "सब अच्छा होगा आप चिंता मत करिए मैंने तो भगवान से प्रसाद भी मान रखा है| अच्छे से यह रिश्ता हो जाए फिर अपनी अर्शी सबका दिल जीत लेगी |देखते हैं ना? परिवार में सब की खुशियों के लिए अगर कभी कुछ त्याग करना पड़े उससे पीछे नहीं हटती| उसका स्नेह और समर्पण उसे सबकी लाडली बना देगा| आप बस इस रिश्ते को हाथ से मत जाने दीजिए| कल ही जाकर फाइनल बात कर लीजिए|

 अगले दिन अर्शी के पापा तैयार होकर बैठे थे |अर्शी की मां से बोले" चाय बना कर लाओ हम सब साथ में चाय पिएंगे" चाय के आने के बाद अर्शी से कहा "बिटिया हम तुमसे कुछ छिपाते तो है नहीं ,जो भी होता है अपने परिवार में सबकी सहमति से होता है| आज हम आपकी शादी की बात पक्की करने जा रहे हैं| उम्मीद है ईश्वर हमारा साथ देगा और रिश्ता पक्का हो जाएगा|  पापा की बातें सुनकर अर्शी की आंखों में आंसू आ गए और भारी स्वर से बोली "पापा ,अभी शादी- कितने सपने देखे हैं? मैंने कितना संघर्ष किया है आपने हम को पढ़ाने के लिए? अब जब आधे से ज्यादा रास्ता तय हो गया है तब फिर अचानक शादी! आप जानते हैं ना ,मैं अपनी पूरी मेहनत कर रही हूं| पापा ने अर्शी को पास बिठाकर सिर पर हाथ रखते हुए कहा" तुम परेशान क्यों हो ?हम अभी बात करने जा रहे हैं उम्मीद है कि सब अच्छा होगा| पर यह भी तो हो सकता है कि सब लोग सहमत ना हो और हमें कल को कोई दूसरी जगह लड़का देखना पड़े |इन सब में समय लगता है -तुम मन लगाकर पढ़ाई करो फिर ऐसे भी तो सोचो वहां सब पढ़े लिखे लोग हैं सब पढ़ाई  अहमियत समझते हैं पढ़ाई में तुम्हारा सहयोग करेंगे अभी एक परिवार तुम्हारा सपना पूरा करने में लगा है फिर दो परिवार होंगे "अर्शी ने फिर अपनी मां की तरफ देखते हुए कहा" पर- इतनी जल्दी क्या है ?अर्शी की मां ने अर्शी का हाथ अपने हाथ में लेकर दुलार ते हुए बोला" बिटिया तुम्हें पता है ना मैं कितना बीमार रहती हूं ?और पापा का भी पिछले ही महीने एक्सीडेंट हुआ है |भगवान की दया से आज सब ठीक हैं| पर कल की क्या गारंटी ?हम दोनों चाहते हैं समय रहते हम अपनी जिम्मेदारियां निभा दें "

      तभी अर्शी के पापा का मोबाइल बजता है और वह बोलते हैं "जी जीजा जी बस निकल रहा हूं |नहीं, देर नहीं होगी तुरंत  निकल रहा हूं|" मोबाइल रखकर अर्शी के पापा ने अर्शी की मां से कहा" राधा, तुम मेरा रुमाल और पर्स ले आओ |अपनी बिटिया बहुत समझदार है सब समझ जाएगी" इतना कहकर अर्शी के पापा घर से चले जाते हैं| और  मां घर के  काम में व्यस्त हो जाती हैं |

       अर्शी अपने कमरे में जाकर पढ़ना शुरू करती है पर आज जाने क्यों? पढ़ाई में उसका ध्यान नहीं लग रहा था| थोड़ी देर बाद अर्शी चारपाई पर लेट कर सोचने लगती है-' मम्मी पापा मुझे बहुत प्यार करते हैं |मैं जानती हूं वह ,वही करेंगे जो मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ होगा |लेकिन शायद वह नहीं समझ पा रहे इन सब से मेरे रास्ते में बेवजह संघर्ष आ सकता है |खैर !अब अगर मैं मना करूंगी तो मम्मी पापा को दुख होगा और क्या उनको दुखी करके मैं अपने सपने पूरे कर पाऊंगी ?नहीं, मैं मम्मी पापा को दुखी करके मैं आगे बढ़ने की सोच भी कैसे सकती हूं ?चलो, किसी के मन की तो हो| और यह भी तो हो सकता है कि पापा की बात सही हो| मुझे दो परिवारों का सपोर्ट मिले| अर्शी सोचते-सोचते सो गई |

                   

     सब सामान्य रहा अगले ही दिन अर्शी के पापा वापस आ गए| मां चाय नाश्ता तो बना रही थी पर मन ही मन धीरज भी  खो रही थी और पापा भी तो हाल बताने के लिए आतुर थे |फ्रेश होकर नाश्ता करतेे - करते पापा ने बोला राधा भगवान का लाख-लाख शुक्र है! इतने भले लोगों से मिलवाया |मैंने लड़के के पापा से पूछा "सर ,आपकी क्या डिमांड है ?" उन्होंने बहुत साफ शब्दों में कहा "हमें रिश्ता करना है |बेटी चाहिए ,हमारा लड़का बिकाऊ थोड़े ही है|"

 मैंने उन्हें स्पष्ट शब्दों में बता दिया" मेरे पास मात्र ₹500000 है|  जिसमें सारी व्यवस्था करनी है| पर लड़की की माता बात - बात में गाड़ी की बात कर रही थी| तब जीजा जी ने बोला "दीदी, गाड़ी लोन से ली जाएगी| पहला पेमेंट  लड़की वाले करेंगे| बाकी की किस्तें आप लोग दे देना| आखिर गाड़ी घर में ही तो रहेगी| और फिर अच्छी लड़की आ गई तो घर में सदा सुख शांति रहेगी इस बात पर सब लोग सहमत हो गए| शादी मई में ,अर्शी की परीक्षा के 15 दिन बाद होगी |अर्शी की मां ने कहा "गाड़ी वाली बात मुझे कुछ ठीक नहीं लग रही| कहीं कुछ...... इतने पर बीच में रोकते हुए अर्शी के पापा बोले "तुम शंका मत पालो, बात सबके सामने हुई है अब तो जल्दी से शादी की तैयारियां करो |अब अर्शी समझ चुकी थी| जो हो रहा है उसी में खुश रहने में भलाई है| जिससे बाकी लोगों का आनंद तो फीका ना पड़े| मां- पापा के चेहरे पर प्रसन्नता देखते ही बन रही थी |  शादी के 5 दिन पहले ही लड़के वालों ने पूरे पैसे ले लिए और गाड़ी लेने का प्लान कैंसिल हो गया |अर्शी का परिवार भी खुश था |उन्हें भी तो लोन लेना पसंद नहीं था| राजी खुशी से शादी हो गई |सब खुश थे| अर्शी को लग रहा था - उसे सच में दो परिवारों का प्यार मिल रहा है|

                       

 एक दिन शाम को जब उसकी मां जी (सास) बैठी हुई थी |अर्शी उनकी गोद में सिर रख कर लेट गई| तभी मां जी अपनी बिटिया से बोली "देखो ,इसे पता ही नहीं है कहां आ गई ? अर्शी धीरे से उठी और प्यार से उनकी तरफ देख कर बोली "अपने घर में ही तो हूं| अब तो मेरी दो - दो मां हैं|

 अगले दिन सुबह वंश ने अर्शी  से चाय बनाने के लिए कहा |अर्शी ने चाय बनाई पर उसके पति ने कहा "दूध में जलने की महक आ रही है| कैसे गर्म किया था ?" अर्शी ने बोला "अरे! दीदी ने गर्म किया था| जल गया होगा|" इतना सुनकर उसकी सास जोर से चिल्लाई "चुपचाप सुन लो, तो क्या हो जाएगा ?कोई जूते थोड़े ही ना मार रहा है |" अर्शी को बहुत अटपटा लगा पर शांत रही |

      अब अर्शी के ऐडमिशन की बारी आ गई थी |वह तैयारी में जुटी थी| अपने कागज तैयार कर रही थी| अभी उसे घर में शोर सुनाई पड़ा |वह कमरे से बाहर निकली तो देखा- उसकी सास जोर -जोर से सामान फेंक रही थी और चिल्ला रही थी |"सुन लो बेटा ,पढ़ाई की एक पाई मैंने नहीं जमा करूंगी और ना ही तुम को करने दूंगी| एक तो गाड़ी नहीं दी| ठग लिया हमको, ऊपर से पढ़ाई भी कराएं जब इनके बप्पा को पढ़ाई करवानी थी तो शादी रचाने की क्या जरूरत थी ?हमारे घर में रहना है ,तो हमारे हिसाब से रहना पड़ेगा| हमने अपने बच्चों को पढ़ा लिया है इतना बहुत है |

अर्शी अपने आप को रोक नहीं पाई फफक - फफक कर रोते हुए बिस्तर पर लेट गई सास का तांडव थम नहीं रहा था  | अर्शी के कानों में पापा के शब्द गूंज रहे थे "अरे !अधिकारी का परिवार है |सब पढ़े लिखे लोग हैं  |तुम्हें दो परिवारों का सपोर्ट मिलेगा |अर्शी को सब की चुप्पी  और भी ज्यादा कचोट रही थी| 

      उसने सोचा पापा को बताऊंगी या फिर ट्यूशन पढ़ा लेती हूं |मेरी पढ़ाई का खर्चा तो निकल ही आएगा| फिर अगले ही पल मन में विचार आया कि पापा ने पूरी बचत तो दहेज के रूप में दे दी और उपहारों और दावत के लिए जो कर्ज लिया था वह अभी तक निबट भी नहीं पाया| रही बात ट्यूशन की तो अर्शी अब तक समझ चुकी थी |उसकी शादी एक ऐसे परिवार में हुई है |जिनके पास डिग्रियां तो हैं |लेकिन विचार अभी भी रूढ़िवादी सोच की जंजीरों में जकड़े हुए हैं |जो लोग सही को सही नहीं कह सकते ,जहां बहु की अहमियत सबसे सस्ती नौकरानी के तौर पर हो| वहां यह मेरी ट्यूशन पढ़ाने की बात....  मेरी ट्यूशन पढ़ाने की बात  कोई नहीं मानेगा| अर्शी समझ नहीं पा रही थी कि इस चक्रव्यूह से बाहर कैसे निकले?

 निवेदन *प्यारे दोस्तों, फिल्मी कहानियों की तरह जिंदगी की कहानियों का अंत हमेशा सुखद नहीं होता |यह कहानी काल्पनिक है | इस कहानी का किसी भी व्यक्ति से कोई ताल्लुक नहीं है| परंतु कहानी में व्यक्त किए गए विचार  सामाजिक व्यवस्थाओं के एक पक्ष को अवश्य उजागर करते हैं |

     अब हमारी बारी है -हम अपनी बेटी की शिक्षा को पूर्ण करने के बाद उसे वैवाहिक जीवन का दायित्व दे और उसके सपनों की उड़ान में अपना पूरा योगदान दें | इसके साथ ही घर आने वाली वधू को अपनी संतान का स्थान तथा प्यार देते हुए उसके सहयोगी बने |

दोस्तों ,आपको ऊपर लिखी कहानी कैसी लगी ?इसके बारे में अपने विचार  कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें जल्दी ही मिलेंगे एक नई ऊर्जा नई कहानी नई सीख के साथ|

Comments

Unknown said…
Black side of our society
Unknown said…
Don't know why people think that daughters are liability on them

Unknown said…
Don't know why people think that daughters are liability on them

Unknown said…
Hum ko nahi lagta y story calpnik ha y 99 k sath same yahi hota hai a agree u firstly apni betio ko self depend banaya jaye

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